राष्ट्र - चेतना

''हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए , अब इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए , सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं , मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए , मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही , हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ..........................''

Sunday, March 13, 2011

राष्ट्र - चेतना: स्विसबैंक काला धन वापस लाओ

राष्ट्र - चेतना: स्विसबैंक काला धन वापस लाओ
प्रस्तुतकर्ता बिहारी सिंह सोलंकी पर 10:23 PM

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बिहारी सिंह सोलंकी

बिहारी सिंह सोलंकी
जो सतत चलते रहते हैं वे ही मधुर फल पाते हैं , सूर्य को देखिये - निरंतर पुरुषार्थ, निरंतर कर्मयोग और निरंतर गतिशील...अतः चलते रहें.

मेरे लिए धर्म का अर्थ है कार्य के प्रति समर्पण और समर्पण भाव से काम करना , मतलब धार्मिक होना .

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बिहारी सिंह सोलंकी
श्योपुर / मुम्बई, म.प्र., India
'' शून्य नभ से मोह छोडो अब धरा से प्यार सीखो , दर्द के द्वारे सदा रचना नया त्यौहार सीखो , और पथ की मुश्किलें तो शक्ति देने के लिए हैं , जीतना है मृत्यु को तो मृत्यु से खिलवार सीखो . ''
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