Saturday, July 11, 2009

समुदाय का सत्य हे समलेंगिकता

समुदाय का सत्य है समलेंगिकता :-
दिल्ली उच्चतम न्यायालय का निर्णय जिसमे समलैंगिकता को अपराध से मुक्त किया गया । लोगो के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ हे न्याय पाने की अपेक्षा में प्रतीक्षारत बर्ग को तो मानो संसार के सारी खुशियाँ ही मिल गयीं हों . लोग बेसुध हो सडको पर नाचे ,खुशियों से झूमे ,क्योकि कल तक जो लोग इस कृत्य को अपराध समझते थे उन्हें ठेंगा दिखाने का,समाज के सामने सीना तानने का अवसर जो न्यायलय ने उन्हें प्रदान किया पर देश में हाहाकार मच गया कई धार्मिक एवम सामाजिक संगठनों ने निर्णय का प्रतिकार किया समाज की भावनाएं आहत हुई , नैतिकता शर्मसार हुई, पर न्यायाधीश महोदय आपने निर्णय के वक्त यह क्यों नहीं सोचा कि इस तरह की लडाई हिन्दुस्थान में लड़ने बाली संस्था नाज फाउन्डेसन को फंडिंग पाश्चात्य देशो से हो रही हे ?
फिर विदेशों में बने कानून को आप आधार बनाते हे तो ये क्यों नहीं देखते की न्यूयार्क के अलबर्ट - आईन्स्ताईन कॉलेज ऑफ़ मेडीसिन के प्रोफेसर डा० चार्ल्स सोकराइड्स की स्वीकारोक्ति है कि योंन उधोगो से जुड़े कुछ तेज तर्रार शातिरों की यह एक धूर्त वैचारिकी हे जो समलैंगिकों को पेथोलोजिकल बताती हे ।
अमेरिकी समाज में समलेंगिकता की समस्या के ख्यात अध्येता डा० चार्ल्स अपनी पुस्तक होमोसेक्स्सुलिटी;टु फार में अपना सूक्ष्म वैज्ञानिक - विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहते हैं - अमेरिकी समाज में यह तथाकथित समलैंगिक क्रान्ति यूँ ही हवा में नहीं गूजने लगी,बल्कि यह कुछ मुट्ठी भर शातिरों के मानववाद , के नाम पर शुरू की जाने वाली वकालत का परिणाम था ,जिसमे से अधिकांश स्वंय भी समंलेंगिक ही थे ये लोग ,ट्राय एनिथिंगसेक्सुअल, के नाम पर शुरू की गयी योनिक अराजकता को ,नारी स्वातंत्र के विरूद्व दिए जा रहे ,एक मुहतोड़ उत्तर की शक्ल में पेश कर रहे थे ।
denis altmen की पुस्तक, होमोस्क्सुँलैजेसंन ऑफ़ अमेरिका,भी इसी वक्त आयी एल्टमेंन स्वंय भी सम्लेंगिक थे
डा० चालर्स कहते हे ''मैंने ४ दशको के अपने चिकत्सीय जीवन के अनुभब के दोरान यह पाया की वे अपनी समलेंगिक जीवन पद्धति से सुखी नहीं हे
स्त्री -पुरुषों के समन्धफिजियोलोजिकल होते हे जबकि समलैंगिक सम्बन्ध पूरी तरह अप्राकृतिक हैं । चिकित्सा विज्ञान की द्रष्टि से गुदा मैथुन करने से गुदा मार्ग काफी संकीर्ण होता हे और अरबो बेक्टीरिया से लबालब होता हे ऐसी स्थिति में गुदा मैथुनकरने से गुदा मार्ग की म्यूकस मेम्ब्रेन बार बार छति ग्रस्त होती रहती हे ,जो अनेको संक्रमणों का कारण बन सकती हे इसी तरह शिशुन पर भी गुदा मार्ग की शशक्त मान्स्पेशियों का दबाब प्राकतिक नहीं होता शिशुनके मार्ग से बेक्टीरिया मूत्र - संस्थान में पहुचकर गुर्दों में संक्रमण कर सकते हे गुर्दों का संक्रमण आगे चलकर किडनी फेलुअर में बदल सकता हे
जब आत्महत्या की कोशिश गेर कानूनी हे तो आत्मघात के रूप में स्थापित किये जाने वाले तरीके को कानूनी रूप देना क्या अपराध नहीं हे ?जीव उत्पत्ति से लेकर आज तक किसी जीव मात्र में समलेंगिगता का उदाहरण देखने में नहीं आता चाहे बह कोई भी पक्षी क्यों न हो जब यह जन्मना नहीं तो कानूनन मान्य क्यों डार्विन और लेमार्क ने जीव उत्पत्ति के विकास वाद का सिद्दांत प्रतिपादित किया एक कोशीय जीव से बहु कोशीय, जलचर से थलचर-नभचर एस तरह क्रमिक विकास का आख़िरी प्राणी हे मनुष्य, मनुष्य से पूर्व के किसी भी प्राणी जबयह आचरण नहीं देखा गया तो यह अवैज्ञानिक तो हे ही अप्राकृतिक भी है .
फिर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसकी मर्यादा , संस्कृति परम्परा ,जीवन शैली है मेरे भारत में भोग नहीं त्याग सर्वोपरी है वेदों में धर्म अर्थ, काम ,मोछ की अनुशरण करने बाले लोग है जहाराम ने अपने लोकाचार के लिए अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया ,क्रष्ण ने १६०१०८ पत्नियों से विवाह किया विवाह के मूल में वासना होती तो वीच में तलाक हो गया होता पर एसा नहीं हुआ क्योकि विवाह भी हमारे यहाँ एक संस्कार है
पर जो लोग मेरे देश को अमेरिका बना देना चाहते हे ,भोग्बाद का नंगा नाच करना चाहते है भीभत्स वासनाओ में अंधे ये लोग भारत के भारत बने रहने से कुंठीत है पीड़ित है सामाजिक मर्यादा इनको बंधन है रोड़ा है इनकी दमित वासनाओ का सत्य है जिस भोडेपन का प्रदर्शन इन्होने किया निर्णय के बाद वह हमसे सब भारतीयों पर तमाचा है पर इनके इस तरह के समाचार जब समाचार पत्रों में आता है तब हिंदुस्तान के बालको के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है न्यायाधीश महोदय आपको इस देश की संस्क्रती से अन्भिज़ नहीं होंघे फिर क्यों दिया आपने एसा निर्णय जो इस देश में षड्यन्त्र्कारियो को पेर ज़माने का मोका देती हो पश्चिम और उस मानसिकता के लोग भारत को तबाह करने का कोईकोई न कोई अवसर दूड़तेरहते है अभी सेक्स एजूकेशनका शोर गोल थमा भी नहीं की एक और मोका उनको अपनी कुंथायो को परगट करने का दूंद लिया यदि इस मानसिकता के आधार पर निर्णय होंगे तो आने बाले समय में हमारे समाज के प्रतिमान क्या होंगे हमारी रीती रिवाज परम्पराओ ,संस्क्रती का कोई मूल्य क्या ये भोगबादी मानसिकता के लोग अदा कर पायेगे ?

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