''हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए , अब इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए , सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं , मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए , मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही , हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ..........................''
Friday, September 4, 2009
बोले सो करना गांधी जी
राहुल गाँधी जी ने अभी हाल ही में स्वीकार किया की हमारे यहाँ दो हिदुस्थान है देर से ही सही किसी ने तो स्वीकार किया असलियत को लेकिन हमारे यहाँ बदकिस्मती यही है की हमारे राजनेता भाषण जितना अच्छा देते है उसको उतना ही जल्दी भूलते भी है पर राहुल जी ने जो बात कही है उस पर अमल बहुत आवश्यक है !करोडो लोग आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा ,और भूख की बुनियादी सुविधाओ से लड़ते हुए जीवन काट रहे है !और सुविधा और समझ के अभाव में मर रहे है अगर हमने गोर नही किया तो भारत का भविष्य खतरे में है जीवन की दिशा में वदलाव लाने की ताकत देने बाली शिक्षा खासकर महँगी और सर्व सुलभता से लगातार दूर होती चली जा रही है या उपलब्ध है तो उसमे आधूनिक चुनोतियों का सामना करने की शक्ति नही है हमने उच्च सस्थानों में IIM,और IIT को 2150 करोड़,चंडीगड़ विश्व विद्यालय को 50 करोड़ उच्च शिक्षा में अन्य कार्य में 2010 करोड़ का प्रावधान इस बर्ष के बजट में रखा है जो निश्चित ही आवश्यकता से कम है लेकिन साथ ही हम दूसरे उन गरीव छात्रों की कोई ठोस व्यवस्था नही करते जो सरकारी परम्परागत कालेजो और स्कूलों में अपना भविष्य तलाश रहे है वैश्विकीकरण के इस दोर में हमारे सामने दोहरी समस्या मुह फाड़े खड़ी है एक तरफ विश्व समुदाय के साथ कदम मिलकर चलने की, तो दुसरी तरफ अभावो में जीवित वर्ग को साथ लेकर चलने की है अब हमारे यंहा अन्तर्राष्ट्रीय शेक्षिक संस्थानों ने आना प्राम्भ कर दिया, उनसे मुकवाला करना हमारे अधिकतर सस्थानों के बूते के बस की वात नही है सो निकट भविष्य में इन विदेशी सस्थानों का प्रभाब भारत में बड़ने के आसार नजर आते है देश के उच्च वर्ग को इनसे शिक्षा ग्रहण करने में कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि उनके पालक के पास बच्चो को पडाने के लिए खर्च की कोई कमी नहीं परेशनी तो उन्हें आने बाली है,जिसे राहुल गांधी ने दूसरा हिन्दुस्तान कहा है जिनके बच्चे आज भी प्राथमिक शाला में जाते है तो उनका ध्यान पड़ने की जगह भोजन पर ज्यादा होता है स्कूलों में मिलने बाला भोजन ही उनके स्कूल जाने का मुख्य कारण होता है लेकिन जब उनके जीवन में खुद के पापी पेट के आलावा भी उनको परिवार के लोगो के पेट पालन की चिंता सताती है तो उन्हें पड़ाइ को स्कूली जीवन में ही तिलांजली देनी पड़ती है! देश में जिन भागो में नक्शलबाद या माओबाद बड़ रहा है, उन लोगो में अभावो से पीड़ित लोगो का उपयोग ज्यादा हो रहा है !क्योंकि ये इन लोगो को उनके शोषण के विरुद्ध खडा होने की अपील कर व्यवस्था के खिलाफ भड़काया जाता रहा है ये लोग अपने कब्जे के क्षेत्रो में कभी बच्चो को 5 वी ज्यादा पडाने के हिमायती नहीं रहे क्योंकि ये अराजकतावादी जानते है की यदि ये वर्ग समझदार हो गया तो फिर उनकी जमीन खिसक जायेगी हम आज इन समस्याओ से लड़ने में जितना धन खर्च कर रहे यदि पहले उन क्षेत्रों में शिक्षा और विकास कार्यो पर इतना खर्च किया गया होता तो हमारी विकास की वुनियादी इवारत ही कुछ और होती! बात अब गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने बालो की ही नहीं ,मध्यम वर्गीय परिवारों की भी है ,हम कह सकते है की हमने गरीव छात्रों को पड़ाइ के लिए लोन की व्यवस्था की है, लेकिन उसका व्यवाहरिक रूप यह की या तो वह बेंक के चक्कर नहीं लगा पाता या पड़ने के लिए कर्ज लेने का रिस्क नहीं लेना चाहता है! क्योंकि बेरोजगारी के कारण परेशांन छात्रो ने उसके मनोबल को ख़त्म कर दिया है !अब जब मानव संसाधन मंत्री यह कह रहे है, की शिक्षा के क्षेत्र में लाभ कमाने बाली कम्पनिया आगे आये तो इसमे हर्ज क्या है !में व्यवसायीकरण के कतइ खिलाफ नहीं यदि शिक्षा और स्वास्थ्य सार्वजानिक लोगो को उपलब्ध होने का कोई ठोस आधार हो ,लेकिन सरकार इस बात की तो कोई गारंटी नहीं दे पा रही, बल्कि सार्वजानिक उपकरणों को निजी हाथो में सोंपकर अधिक मात्रा में धन का उपार्जन करना चाहती राहुल गांधी जी इन सार्वजानिक स्थानों का उपयोग गरीब व् माध्यम वर्गीय परिवार करते है ,जिन्हें आपकी सरकार नीलाम करने पर तुली है रोकिये आप उन्हें उनके लिए जिसे आप दूसरा हिन्दुस्थान कहते है ! शिक्षा के क्षेत्र में अभी सकल घरेलु उत्पादन का 3 % खर्च किया जा रहा है जबकि आवश्यकता कम से कम 6% की है इस बात की यदि कोई गारंटी गांधी जी आप या आपकी सरकार यदि दे पाए की शिक्षा व् स्वास्थ्य ,समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को उपलव्ध करवाया जायेगा तो निश्चित रूप से आपका भाषण जो आपने छत्तीसगड की राजधानी रायपुर में दिया कारगर सवित हो सकता है अन्यथा हमारे यहाँ भाषण बाज नेता तो बहुत है
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" sacchai bahri baat ...aapki baat sahi hai ...aapki post kafi acchi bani hai ...aapko hamari aur se badhai "
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
ab dekhate hai ki rahul kya karate hai
ReplyDeleteधर्म का अर्थ - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) ।
ReplyDeleteव्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
धर्म सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं ‘उपासना द्वारा मोक्ष’ एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri
वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।
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