राष्ट्र - चेतना
''हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए , अब इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए , सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं , मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए , मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही , हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ..........................''
Friday, October 14, 2011
सोनिया गांधी की यात्रा का खर्च 1850 करोड़
इतना खर्चा तो प्रधानमंत्री का भी नहीं है : पिछले तीन साल में सोनिया की सरकारी ऐश का सुबूत, सोनिया गाँधी के उपर सरकार ने पिछले तीन साल में जीतनी रकम उनकी निजी विदेश यात्राओ पर की है उतना खर्च तो प्रधानमंत्री ने भी नहीं किया है ..एक सूचना के अनुसार पिछले तीन साल में सरकार ने करीब एक हज़ार आठ सौ अस्सी करोड रूपये सोनिया के विदेश दौरे के उपर खर्च किये है ..कैग ने इस पर आपति भी जताई तो दो अधिकारियो का तबादला कर दिया गया .
अब इस पर एक पत्रकार रमेश वर्मा ने सरकार से आर टी आई के तहत निम्न जानकारी मांगी है :
सोनिया के उपर पिछले तीन साल में कुल कितने रूपये सरकार ने उनकी विदेश यात्रा के लिए खर्च की है ?
क्या ये यात्राये सरकारी थी ?
अगर सरकारी थी तो फिर उन यात्राओ से इस देश को क्या फायदा हुआ ?
भारत के संबिधान में सोनिया की हैसियत एक सांसद की है तो फिर उनको प्रोटोकॉल में एक राष्ट्रअध्यछ का दर्जा कैसे मिला है ?
सोनिया गाँधी आठ बार अपनी बीमार माँ को देखने न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में गयी जो की उनकी एक निजी यात्रा थी फिर हर बार हिल्टन होटल में चार महगे सुइट भारतीय दूतावास ने क्यों सरकारी पैसे से बुक करवाए ?
इस देश के प्रोटोकॉल के अनुसार सिर्फ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही विशेष विमान से अपने लाव लश्कर के साथ विदेश यात्रा कर सकते है तो फिर एक सांसद को विशेष सरकारी विमान लेकर विदेश यात्रा की अनुमति क्यों दी गयी ?
सोनिया गाँधी ने पिछले तीन साल में कितनी बार इटली और वेटिकेन की यात्राये की है ?
मित्रों कई बार कोशिश करने के बावजूद भी जब सरकार की ओर से कोई जबाब नहीं मिला तो थक हारकर केंद्रीय सूचना आयोग में अपील करनी पड़ी.
केन्द्रीय सूचना आयोग प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय के गलत रवैये से हैरान हो गया .और उसने प्रधानमंत्री के ऊपर बहुत ही सख्त टिप्पणी की
केन्द्रीय सूचना आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी दौरों पर उस पर खर्च हुए पैसे को सार्वजनिक करने को कहा है। सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इसके निर्देश भी दिए हैं। हिसार के एक आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय से सोनिया गांधी के विदेशी दौरों, उन पर खर्च, विदेशी दौरों के मकसद और दौरों से हुए फायदे के बारे में जानकारी मांगी है।
26 फरवरी 2010 को प्रधानमंत्री कार्यालय को वर्मा की याचिका मिली, जिसे पीएमओ ने 16 मार्च 2010 को विदेश मंत्रालय को भेज दिया। 26 मार्च 2010 को विदेश मंत्रालय ने याचिका को संसदीय कार्य मंत्रालय के पास भेज दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय के इस ढ़ीले रवैए पर नाराजगी जताते हुए मुख्य सूचना आयुक्त सत्येन्द्र मिश्रा ने निर्देश दिया कि भविष्य में याचिका की संबंधित मंत्रालय ही भेजा जाए। वर्मा ने पीएमओ के सीपीआईओ को याचिका दी थी। सीपीआईओ को यह याचिका संबंधित मंत्रालय को भेजनी चाहिए थी।
आखिर सोनिया की विदेश यात्राओ में वो कौन सा राज छुपा है जो इस देश के " संत " प्रधानमंत्री इस देश की जनता को बताना नहीं चाहते ? !
Thursday, August 4, 2011
लव जेहाद: क्यों, कैसे, नुकसान और बचाव क्यों?
भूमि से इस्लामिक सेनाए जिंदा वापस नहीं जाती थी , उस वक्त भारत के
मंदिरों से ज्यादा भारत की औरतो का लालच दे कर जेहादी नेता अपनी सेनाओ को
मना पाते थे भारत पर हमला करने के लिए | “औरतो की लूट” नामक एक किताब तक
लिखी जा चुकी हैं जिसमे दिल देहला देने वाले आकडे हैं मुसलमानों द्वारा
हिंदू स्त्रियों को लूट के सामान की तरह ले जाने के लिए | उन आकडो से तो
सिर्फ यही साबित होता हैं के अफगानिस्तान और तुर्की की ९० फ़ीसदी आबादी
हिंदू औरतो से ही पैदा हैं | समय बदल गया हैं, आज औरतो को मुस्लमान एक
गैर इस्लामिक देश में ऐसे ही उठा के नहीं ले जा सकते बंगलादेश या
पाकिस्तान की बात अलग हैं | भारत में या यूरोप में इन्होने अलग तरीके
अपना रखे हैं गैर मुस्लमान औरतो से बच्चे पैदा कर के इस्लाम को बढ़ाने के
| तो यहाँ शुरू होता हैं लव जेहाद |
कैसे?
१. मुस्लिम लडको को मौलवियो व अन्य इस्लामिक संगठन द्वारा हिंदू लडकियो
को फ़साने को ना केवल प्रोत्साहित किया जाता हैं अपितु इनाम के तौर पर या
कहे घर बसाने के नाम पर बड़ी रकम भी रखी जाती हैं | ये रकम जेहाद के नाम
पर, जकात के नाम पर, जिज्या के नाम या आपके द्वारा पेट्रोल पर दी हुई रकम
से ली जाती हैं |
२. कम से कम ४-५ लड़के (ज्यादा भी हो सकते हैं ) आपस में मिल के हिंदू
लडकियो को चुनते हैं फ़साने के लिए | मुस्लमान हमेशा समूह में रहते हैं
अपने कायर स्वाभाव की वजह से इसलिए उन हिंदू लडकियो को बचाना इतना सरल
नहीं होता |
३. ये लड़के गर्ल्स कालेज के बाहर, कंप्यूटर संसथान के बाहर या अंदर, या
कोचिंग संस्थानों के आसपास रहते हैं | कभी-२ लेडिस टेलर की दुकान पर ४-५
लड़के लगे ही रहते हैं | इन्टरनेट पर सोशल नेटवर्क से लेकर याहू चैट रूम
तक हर वो जगह जहा इन्हें हिंदू लड़किया मिल सकती हैं वहा ये लगे रहते हैं
घात में |
४. ज्यादातर मौको पर ये लड़के खुद को हिंदू ही दिखाने का प्रयास करते हैं
| अच्छा मोबाइल सेट, कपडे, वा मोटर साइकिल आकर्षण के तौर पर इनका हथियार
होते हैं | जिम में घंटो कसरत भी ये लोंग इसी लिए करते हैं ताकि अधिक से
अधिक हिंदू लड़किया फसा सके |
५. दक्षिण भारत में तो मुल्ला मौलवी इन लडको के लिए पर्सोनालिटी
डेवेलोप्मेंट कोर्से चलवा देते हैं | किस तरह बात की जाए लडकियो से ,
उन्हें कैसे तोहफे दिए जाए | और किस प्रकार सेक्युलर बन कर उनसे सिर्फ
प्यार मोहब्बत की बात कर के खूबसूरत सपने दिखाए जाए |
६. फिल्म उद्योग में बढते खान मेनिया से ये अब और भी सरल हो गया हैं |
ज्यादातर हीरो खान होते हैं ऐसी मानसिकता लड़कियों में तेजी से बढ़ रही
हैं जो की समाज के लिए बहुत की घातक हैं |
७. अगर हिंदू लड़की निश्चित समय में नहीं फसती तो लव जेहादी अपने किसी
दूसरे मित्र को उसके पीछे लगा देता हैं और खुद किसी और के पीछे लग जाता
हैं | इसे लड़की फॉरवर्ड करना कहते हैं |
८. जल्द ही ये लड़के भोली भाली हिंदू लडकियो को अपने प्यार के जाल में
फसा लेते हैं | उनमे से कई तो शारीरिक सम्बन्ध भी स्थापित कर लेते हैं |
ज्यादातर घटनाओ में मुस्लिम लड़के वाईग्रा का इस्तेमाल करते हैं ताकि
लड़किया संतुष्ट रहे और उनके खानपान से आई नापुसकता छुपी रहे |
९. एक बार लड़की से सम्बन्ध स्थापित हो गए तो लड़की को घर से भागने के
लिए मनाने में इन्हें देर नहीं लगती | कही बार ये पहले भी मना लेते हैं
पर ऐसा कम ही होता हैं |
१०. भगा के लड़का लड़की को शादी से पहले इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर करा
लेता हैं इस्लामी तरीके से शादी के नाम पर और लड़की फस जाती हैं जाल में
क्यों की लड़की को वापस जाने की बात तो दिमाग में आती ही नहीं |
११. लड़की को भगा के इस्लामिक शादी कर ले जाने के बाद लड़की के साथ निम्न
में से एक घटना होती हैं क ) लड़का लड़की का पूरी तरह भोग कर के उसके शहर
से चार पाच सौ किलोमीटर दूर बेच देता हैं किसी अधेड उम्र के मुस्लमान
आदमी को जिसको उसकी बदसूरती की वजह से औरत नहीं मिली होती या उसे बस औरतो
का शौक होता हैं | यानि लड़की को वैश्या व्रती के दल दल में डाल देता हैं
|
ख ) लड़की को पता चलता हैं के लड़का पहले से ही २-३ शादिया करे बैठा हैं
| और उसे भी नकाब में बंद एक कमरा मिल जाता हैं |
घ ) लड़की की किस्मत अच्छी होती हैं और वो उसकी पहली बीवी ही निकलती हैं
| इस पारिस्थि में लड़की नकाब में तो कैद होती हैं पर उसे अपने २-३ सौतनो
का इन्तेज़ार करना पड़ता है | और लड़के की गुलाम बन कर रह जाती हैं क्यों
की वो इस्लाम कुबूल कर चुकी होती हैं और इस्लाम में औरत को तलाक का कोई
अधिकार नहीं होता
नुकसान
१. एक हिंदू लड़की के भागने से कम से कम ८ हिन्दुओ की हानि होती हैं |
२. जो लड़की भागती हैं वहा एक , जिसके साथ भागती हैं उसके लिए कम से कम ४
बच्चे पैदा करती हैं , अगर वहा लड़की ना भागती और किसी हिंदू के साथ शादी
करती और वहा समझदार होता तो कम से कम ३ बच्चे पैदा करता इस प्रकार
१+४+३=८ हिन्दुओ का नुकसान होता हैं |
३. अब जरा अनुमान लगाइए के ८ हिंदू अगले पच्चीस साल में ३ बच्चे भी पैदा
करते तो २४ और वो अगले पच्चीस साल में ७२ इस प्रकार सौ साल में ४३२
हिन्दुओ का नुकसान होता सिर्फ एक हिंदू लड़की के जाने से |
४. वही एक मुस्लमान एक हिंदू लड़की भागने पर उस से ४ बच्चे पैदा करता हैं
वो ४ अगले पचीस साल में १६ बच्चे पैदा करते हैं वो १६ अगले पचीस साल में
६४ बच्चे पैदा करते हैं इस प्रकार ५१२ मुसलमानों की वृधि होती हैं |
५. अब जोडीये जरा ४३२ + ५१२ = ९४४ हिन्दुओ का नुकसान सौ साल में बिना
किसी तलवार के जोर के और कहने को इस्लाम दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ने
वाला मजहब |
६. इन्टरनेट पर उपलब्ध आकडो के अनुसार हर साल १ लाख से ऊपर हिंदू लड़किया
मुस्लिम लडको के साथ भाग रही हैं तो अब जरा गुना करिये ९४४ * १००००० =
९४४००००० यानि नौ करोड़ चौवालीस लाख का अंतर बैठेगा सिर्फ एक साल में
हिंदू लड़कियों के भागने के नुकसान पर अगले सौ सालो में | ये आकड़ा बड़ा
जरुर लगता होगा पर इसमें मृत्यु दर, नापुसकता दर , वा अन्य घटी भी लगा ले
तो भी ये अकडा करोड़ों में ही रहेगा |
७. इस आकडे के अनुसार अगर सिर्फ २० साल मुस्लिम इसी दर से लव जेहाद का
अभियान चलाते रहे तो उनकी आबादी में कितनी वृधि होगी इसका अनुमान आप खुद
ही लगाइए यानी आने वाले समय में हिन्दुओ का सुपडा साफ़ हो जाएगा सिर्फ इस
छोटे से लगाने वाले बड़े हथियार से | लड़किया दोनों समुदायों में कम हैं
पर हिंदू आबादी पर हो रहे इस विशेष तकनिकी हमले की वजह से हिंदू वृधि दर
को नकारात्मक में जाने में देर नहीं लगेगी |
८. जो हिंदू ८०० सालो की जबरदस्त मार काट के बावजूद ८० करोड़ बचा हुआ था
वो मात्र २० साल के निरंतर एक दर के लव जेहाद से अगले सौ सालो में लुप्त
होने की कगार पर पहुच जाएगा | जैसे आज यहूदियो का हाल हैं |
१. लड़की के पालन,पोषण शिक्षा पर हिंदू मा-बाप कितना खर्च करते हैं पर जब
हिन्दुओ को अपनी कौम को बढ़ाने का वक्त आता हैं तो मुस्लिम लड़के हिंदू
लडकियो को ले उड़ते हैं | ये तरीका मुसलमानों को खुद के बच्चे पैदा कर के
उन्हें पाल पास के बड़ा करने से भी सरल हैं , पका पकाया खाने का सरलतम
तरीका हैं लव जेहाद |
बचाव
१. लड़कियों को बचपन से ही वैदिक धर्म के मूलभूत सिद्धांत और इस्लाम की
कार्य निति समझा दीजिए | ये कार्य आप अपने बच्चो को खाने के टेबल पर भी
सिखा सकते हैं | बच्चो को बाल सत्यार्थ प्रकाश और किशोरों को सत्यार्थ
प्रकाश पढ़ने को अवश्य दे |
२. किसी भी प्रकार से किसी भी मुस्लिम को घर के अंदर मत घुसने दे |
३. अगर कोई मुस्लिम लड़का आपकी लड़की के आसपास फटक रहा हैं तो फ़ौरन
कारवाही करिये | यदि खुद आप समर्थ नहीं तो अपने सर्वप्रथम अपने क्षेत्र
के लोगो की उसके बाद वजरंग दल , विश्व हिंदू परिषद , राष्ट्रीय स्वं सेवक
संघ , आर्य समाज , या अन्य किसी भी हिंदू संगठन की मदद ले |
४. पुलिस से सहायता लेने में भी ना चुके |
५. अपनी लड़की से खुल के बात करे अगर उसका कोई हिंदू प्रेमी हैं तो उसे
घर पर बुला कर मिले | इस बात से निश्चित हो जाए के वो हिंदू हैं | व्यस्त
लड़की पर मुस्लिम जेहादी जल्दी सफलता नहीं पा पाते |
६. अंतर जातीय शादी को अब मान्यता दे | ये देखे के लड़के का चरित्र कैसा
हैं और वो करता क्या हैं ना की उसका उपनाम | किसी भी जाती का हिंदू एक
मुसलमान से हज़ार गुना बहेतर हैं क्यों की उसके पूर्वजो ने अपना शौर्य
दिखा के अपने धर्मं को नहीं छोड़ा |
७. दहेज ना ले, ना दे और लड़की की जल्द से जल्द शादी करा दे |
८. मुसलमानो का आर्थिक बहिष्कार करे | और अपने क्षेत्र के लडको को उनकी
लड़कियों से शादी करने को प्रेरित करे | ये बदले की भावना से नहीं बल्कि
सुरक्षा की भावना से करे | इस से उस मुस्लिम लड़की का भी उद्धार होगा |
९. मुस्लिम लड़का हिंदू होने को भी तैयार हो सकता हैं | पर अक्सर ऐसे
मामलो पर भरोसा ना करे | इस्लाम में काफिरो यानि गैर मुसलमानों से झूठ
बोलना जायज हैं इसे तकिया कहा जाता हैं | लड़का सिर्फ लड़की फ़साने के
लिए ऐसा नाटक कर सकता हैं इसलिए जोखिम मत उठाये |
१०. अगर कोई मुस्लिम इस प्रकार की घटना में हिंदू मुस्लिम एकता का हवाला
दे तो उस से पूछियेगा के क्या वो अपनी बहन की शादी किसी हिंदू से करा रहा
हैं | हिंदू मुस्लिम एकता सिर्फ हिंदू लड़कियों की शादी मुस्लिम लड़को से
शादी करने से तो नहीं आयेगी इसमें उन्हें भी बराबरी का सहयोग देना होगा |
११. अगर लड़की भाग भी गई हैं तो उसे वापस लाने में संकोच ना करे | इसमें
कोई शर्म की बात नही बल्कि लड़की को वापस लाने से आप अपनी गलती सुधारेंगे
| हिंदू संगठनो में वा आर्य समाज के माध्यम से आपको ऐसे बहुत से राष्ट्र
भक्त युवा मिल जाएँगे जो उन लडकियो को स्वीकार करने को तैयार हो जाएँगे |
१२. कम से कम ३ बच्चे अवश्य पैदा करे और ये जान ले की लडकिया समाज का
आधार हैं | उनसे ही कौम आगे बढ़ेगी इसलिए भ्रूण हत्या के खिलाफ आन्दोलन
में जागरूक रहे |
Friday, July 8, 2011
शिक्षा का वामपंथीकरण, पढ़ो गांधी की जगह लेनिन
लेनिन की मानसिकता को समझने के लिए उसकी एक घोषणा का जिक्र करना जरूरी समझता हूं। लेनिन ने एक बार सार्वजनिक घोषणा द्वारा अपने देशवासियों को चेतावनी दी थी कि 'जो कोई भी नई शासन व्यवस्था का विरोध करेगा उसे उसी स्थान पर गोली मार दी जाएगी।' लेनिन अपने विरोधियों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया करता था। ऐसे आदर्श का पालन करने वाले लेनिन को अब त्रिपुरा के बच्चे पढेंग़े। वे बच्चे जो अभी कक्षा पांच के छात्र हैं। इस उम्र में उनके मन में जिस तरह के विचारों का बीजारोपण हो जाएगा। युवा अवस्था के बाद उसी तरह की फसल देश को मिलेगी। इस तथ्य को वामपंथी अच्छे से जानते हैं। इसी सोची समझी साजिश के तहत उन्होंने महात्मा को देश के मन से हटाने की नापाक कोशिश की है। उन्होंने ऐसा पहली बार नहीं किया, वे शिक्षा व्यवस्था के साथ वर्षों से दूषित खेल खेलते आ रहे हैं।
वामपंथियों की ओर से अपने हित के लिए समय-समय पर शिक्षा व्यवस्था के साथ किए जाने वाले परिवर्तनों पर, तथाकथित सेक्युलर जमात गुड़ खाए बैठी रहती है। उन्हें शिक्षा का यह वामपंथीकरण नजर नहीं आता। वे तो रंगे सियारों की तरह तब ही आसमान की ओर मुंह कर हुआं...हुआं... चिल्लाते हैं जब किसी भाजपा सरकार की ओर से शिक्षा व्यवस्था में बदलाव किया जाता है। तब तो सब झुंड बनाकर भगवाकरण-भगवाकरण जपने लगते हैं। सेक्युलर जमातों की यह नीयत समझ से परे है। खैर, वामपंथियों को तो वैसे भी महात्मा गांधी से बैर है। क्योंकि, गांधी क्रांति की बात तो करते हैं, लेकिन उसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं। वहीं वामपंथियों की क्रांति बिना रक्त के संभव ही नहीं। गांधी इस वीर प्रसूता भारती के सुत हैं, जबकि कम्युनिस्टों के, इस देश के लोग आदर्श हो ही नहीं सकते। गांधीजी भारतीय जीवन पद्धति को श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि वामपंथी कहते हैं कि भारतीयों को जीना आता ही नहीं। गांधीजी सब धर्मों का सम्मान करते हैं और हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ठ घोषित करते हैं, जबकि कम्युस्टिों के मुताबिक दुनिया में हिन्दू धर्म में ही सारी बुराइयां विद्यमान हैं। वामपंथियों का महात्मा गांधी सहित इस देश के आदर्शों के प्रति कितना 'सम्मान' है यह १९४० में सबके सामने आया। १९४० में वामपंथियों ने अंग्रेजों का भरपूर साथ दिया। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का सूत्रपात किया। उस समय कुटिल वामपंथियों ने भारत छोड़ो आंदोलन के विरुद्ध खूब षड्यंत्र किए। गांधी और भारत के प्रति द्वेष रखने वाले वामपंथी देश के बच्चों को क्यों महात्मा को पढऩे देना चाहेंगे।
शिक्षा बदल दो तो आने वाली नस्ल स्वत: ही जैसी चाहते हैं वैसी हो जाएगी। इस नियम का फायदा वामपंथियों ने सबसे अधिक उठाया। बावजूद वे उतने सफल नहीं हो पाए। इसे भारत की माटी की ताकत माना जाएगा। तमाम प्रयास के बाद भी उसके बेटों को पूरी तरह भारत विमुख कभी नहीं किया जा सका है। वैसे वामपंथी भारत की शिक्षा व्यवस्था में बहुत पहले से सेंध लगाने में लगे हुए हैं। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के प्रकल्प के तहत दस खण्डों के 'स्वाधीनता की ओर' ग्रंथ का प्रकाशन करवाया गया। इसे तैयार करने में अधिकांशत: कम्युनिस्ट टोली लगाई गई। अब ये क्या और कैसा भारत का इतिहास लिखते हैं इसे सहज समझा जा सकता है। इस ग्रंथ में १९४३-४४ तक के कालखण्ड में महात्मा गांधी जी के बारे में केवल ४२ दस्तावेज हैं, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी के लिए सैकड़ों। ऐसा क्यों? क्या कम्युनिस्ट पार्टी इस देश के लिए महात्मा गांधी से अधिक महत्व रखती है? क्या कम्युनिस्ट पार्टी का स्वाधीनता संग्राम में गांधी से अधिक योगदान है? भारतीय इतिहास के पन्नों से हकीकत कुछ और ही बयां होती है। इतिहास कहता है कि १९४३-४४ में भारत के कम्युनिस्ट अंग्रेजों के पिट्ठू बन गए थे। इसी ग्रंथ में विश्लेषण के दौरान गांधी जी को पूंजीवादी, शोषक वर्ग के प्रवक्ता, बुर्जुआ वर्ग के प्रतिनिधि, प्रतिक्रियावाद का संरक्षक आदि कहकर गालियां दी गईं। यह है कम्युनिस्टों का चेहरा। यह है गांधीजी के प्रति उनका द्वेष।
स्वतंत्रता पूर्व से ही वामपंथियों ने बौद्धिक संस्थानों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था। इसका असर यह हुआ कि तब से ही शिक्षा-साहित्य में भारतीयता के पक्ष की उपेक्षा की जाने लगी थी। जयशंकर को दरकिनार किया, उनकी जगह दूसरे लोगों को महत्व दिया जाने लगा। कारण, जयशंकर भारतीय संस्कृति के पक्ष में और उसे आधार बनाकर लिखते थे। ऐसे में उन्हें आगे कैसे आने दिया जाता। वहीं प्रेमचंद की भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत रचनाओं को कचरा बताकर पाठ्यक्रमों से हटवाया गया। उनके 'रंगभूमि' उपन्यास की उपेक्षा की गई। क्योंकि, रंगभूमि का नायक 'गांधीवादी' और भारतीय चिंतन का प्रतिनिधित्व करता है। निराला की वे रचनाएं जो भारतीय मानस के अनुकूल थीं यथा 'तुलसीदास' और 'राम की शक्तिपूजा' आदि की उपेक्षा की गई। ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं।
आजादी के बाद इन्होंने तमाम विरोधों के बाद भी मनवांछित बदलाव शिक्षा व्यवस्था में किए। महान प्रगतिशीलों ने 'ग' से 'गणेश' की जगह 'ग' से 'गधा' तक पढ़वाया। केरल में तो उच्च शिक्षा का पूरी तरह वामपंथीकरण कर दिया है। वहां राजनीति, विज्ञान और इतिहास में राष्ट्रभक्त नेताओं और विचारकों का नामोनिशान ही नहीं है। केरल के उच्च शिक्षित यह जान ही नहीं सकते कि विश्व को शांति का मंत्र देने वाले महात्मा गांधी और अयांकलि के समाज सुधारक श्रीनारायण गुरु सहित अन्य विचारक कौन थे। इनके अध्याय वहां के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हैं। ये यह भी नहीं जान सकते कि भारत ने आजादी के लिए कितने बलिदान दिए हैं, क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन का तो जिक्र ही नहीं है, जबकि माक्र्सवादी संघर्ष से किताबें भरी पड़ी हैं।...........lokendr singh rajpoot
Sunday, March 13, 2011
स्विसबैंक काला धन वापस लाओ
*पूरी दुनिया में कर चोरी और भ्रष्ट-आचरण से कमाया गया धन सुरक्षित रखने
का पहली पसंद स्विस-बैंक रहे हैं, क्योंकि वहां खाताधारकों के नाम गोपनीय
रखने संबंधी कानूनों का पालन पूरी द्रढ़ता से किया जाता रहा है . नाम की
जानकारी बैंक के कुछ आला-अधिकारियों को ही रहती है . स्विस बैंक से
सेवानिवृत्त एक अधिकारी रूडोल्फ एल्मर ने 200 भारतीय खाताधारकों की सूची
विकीलीक्स को सौंप दी है . इसी प्रकार फ़्रांस सरकार ने भी हर्व
फेल्सियानी से मिली HSBC bank की CD Global Financial Institute को
उपलब्ध कराई है , जिसमें कई भारतीयों के नाम दर्ज हैं .
भ्रष्टाचार के खिलाफ United Nations ने एक संकल्प पारित किया है
जिसका मकसद है गैर-कानूनी तरीके से विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जा
सके . इस संकल्प पर भारत समेत 140 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं . 126
देशों ने इसे लागू कर कला धन वसूलना भी प्रारम्भ कर दिया है . यह संकल्प
2003 में लागू हुआ था , भारत ने 2005 में इस पर हस्ताक्षर किये. लेकिन आज
तक इसके सत्यापन में टालमटोल हो रहा है .
switzerland के क़ानून के अनुसार कोई भी देश इस संकल्प को
सत्यापित किये बिना विदेशों में जमा काले धन की वापसी की कार्यवाही नहीं
कर सकता . परन्तु switzerland सरकार न केवल सहयोग के लिए तैयार है बल्कि
वहां की संसदीय कमेटी ने तो इस मामले को लेकर दोनों देशों के बीच हुए
समझौते को भी मंजूरी दे दी है .
परन्तु प्रधानमंत्री और उनके रहनुमा काले-धन की वापसी की
कोशिशों को इसलिए अंजाम तक नहीं पहुंचा रहे हैं क्योंकि नकाब हटने पर
सबसे ज्यादा फजीहत कांग्रेसी- कुनबे और उनके वरदहस्त ब्यूरोक्रेट्स की
होनी है .
नवम्बर 19, 1991 को Schweizer Illustrierte - जो कि
switzerland की एक प्रसिद्ध पत्रिका है , ने खुलासा करते हुए तीसरी
दुनिया के कुछ नामी गिरामी नेताओं की सूची जारी की थी जिनके नाम अकूत धन
स्विस बैंकों में जमा है , इस सूची में राजीव गांधी का भी नाम था . यह
पत्रिका कोई आम पत्रिका नहीं है . इस पत्रिका की लगभग 215000 प्रतिया
छपती हैं और इसके पाठकों की संख्या भी करीब 917000 है , जो पूरे
switzerland की वयस्क आबादी का छठवा हिस्सा है . KGB रिपोर्ट के खुलासे
के अनुसार सोनिया गांधी जो मृत राजीव गांधी की विधवा के रूप में अपने
अवयस्क लड़के के बदले जो खता संचालित करती हैं उसमें 2.5 बिलियन
स्विस-फ्रेंक हैं . जो लगभग 2.2 bilion डॉलर हुए , यह 2.2 bilion डॉलर
का खाता तब भी सक्रिय था जब राहुल गांधी 1998 में वयस्क हुए थे. आज यह
राशि 84000 करोड़ रू. होने का अनुमान है .
हम जानना चाहते हैं कि क्या वजह है कि जब सारे देश स्विस-बैंक
में जमा अवैध व काले धन को वापस लाने की कवायद में जुटे हैं वहीं सोनिया
सरकार इस मुद्दे पर मौन क्यों हैं ?
स्विस बैंकों में भारत के नेताओं और उद्योगपतियों का
इतना रूपया जमा है कि भारत पर जितना विदेशी कर्ज है उसका एक बार नहीं 13
बार हम भुगतान कर सकते हैं .
यदि यह धन भारत के गरीबी - रेखा से नीचे रहने वाले 45
करोड़ लोगों के बीच में बाँट दिया जाए तो हर इंसान लखपति हो जाये .
काला धन वापस प्राप्त करने की लडाई अभी नाईजीरिया जीत चूका है
. नाईजीरिया के राष्ट्रपति सानी अबाचा ने अपनी प्रजा को लूटकर
स्विस-बैंकों में 33 करोड़ अमेरिकी डॉलर जमा कराये थे . अबाचा को अपदस्थ
कर वहां के शासकों ने स्विस-बैंकों से राष्ट्र का धन वापस लाने के लिए
लम्बी लडाई लड़ी और सफलता हासिल की . जब नाईजीरिया के शासक ऐसा सोच और कर
सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते?
स्विस बैंकों से धन वापस लाने की तीन शर्तें हैं -
-- पहली- क्या वह धन आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिए जमा किया गया है ?
--दूसरी-- क्या वह धन मादक-द्रव्यों के धंधे से प्राप्त किया गया है ?
--तीसरी -क्या वह धन देश के कानून को भंग करके प्राप्त किया गया है ?
इसमें से तीसरे कारण को आधार बनाकर स्विस बैंकों में जमा धन वापस
लाया जा सकता है .
--भाजपा का मानना है स्विस बैंकों में जमा भारत का धन अवैध रूप से ,
भ्रष्ट साधनों के द्वारा एकत्र करके जमा किया गया है अतः केंद्र-सरकार एक
Legal-Framework तैयार कर इसे वापस लाने की दिशा में प्रयास करे .
Thursday, March 3, 2011
पंडित दीनदयाल जी
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की विकास की अवधारणा पश्चिमी अवधारणा से बिलकुल विपरीत है। इतना तो सब मानते हैं कि मानव जीवन के समस्त क्रियाकलापों का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है और मानव के यह क्रियाकलाप ही उसके विकास का रास्ता है। पश्चिम के लोग और शायद हमारे देश के नीति निर्धारक भी यह मानते हैं कि जहां ज्यादा उपभोग होते हैं वहां ज्यादा सुख होता है और वही विकास की प्रतीक होता है। परंतु पंडित दीनदयाल उपाध्याय उपभोग या सुख को विकास का पर्याय नहीं मानते थे। वे इसके लिए एक अत्यंत सुंदर उदाहरण दिया करते थे। वह कहते थे कि व्यक्ति को गुलाब जामुन खाना अच्छा लगता है। व्यक्ति को लगता है कि गुलाब जामुन खाने से सुख प्राप्त हो रहा है। कई वह व्यक्ति सचमुच यह मान लेता है कि गुलाब जामुन में ही सुख है। गुलाम जामुन का उपभोग करने से ही सुख प्राप्त होता है। लेकिन मान लीजिये कि जब व्यक्ति गुलाब जामुन खा रहा हो तो उसके पास उसके किसी परिजन के देहांत की खबर आ जाए। तब व्यक्ति भी वही रहेगा और उसके हाथ में वही गुलाब जामुन रहेगा लेकिन सुख उसके पास नहीं होगा। अगर गुलाब जामुन में ही सुख है तो फिर उस समय भी व्यक्ति को सुख प्राप्त होना चाहिए था। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि मन की स्थिति ही सुख की अवधारक है। मन पर नियंत्रण ही वास्तविक विकास है। वह स्पष्ट तौर पर कहते थे कि उपभोग के विकास का रास्ता राक्षसत्व की और जाता है और मन को नियंत्रित करने का विकास का रास्ता देवत्व की ओर जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस देवत्व के रास्ते का अनुसंधान कर रहे थे । परंतु यह ठीक है कि यह नया रास्ता नहीं था। भारतीय साधु संत तथा सामान्य जन हजारों-हजारों वर्षों से इसकी साधना कर रहे थे । महात्मा गांधी भी एक सीमा तक उपभोग के खिलाफ थे ।
मनुष्य की जितनी भौतिक आवश्यकताएं हैं उनकी पूर्ति का महत्व को भारतीय चिंतन ने स्वीकार किया है, परंतु उसे सर्वस्व नहीं माना। मनुष्य के शरीर, मन, बुध्दि और आत्मा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए और उसकी इच्छाओं व कामनाओं की संतुष्टि और उसके सर्वांगीण विकास के लिए भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ चतुष्टय की जो अवधारणा है पंडित दीनदयाल उपाध्याय उसे आज के युग में भारत के समग्र विकास का मूल आधार मानते थे । पुरुषार्थ के यह चार अवधारणाएं है- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। पुरुषार्थ का अर्थ है उन कर्मों से है जिनसे पुरुषत्व र्साथक हो। धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की कामना मनुष्य में स्वाभविक होती है और उनके पालन से उसको आनंद प्राप्त होता है।
जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है कि मनुष्य की भौतिक आवश्यकता व अन्य आवश्यकताओं को पश्चिम की दृष्टि में सुख माना गया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार अर्थ और काम पर धर्म का नियंत्रण रखना जरुरी है और धर्म के नियंत्रण से ही मोक्ष पुरुषार्थ प्राप्त हो सकता है। यद्यपि भारतीय संस्कृति में मोक्ष को परम पुरुषार्थ माना गया है. तो भी अकेले उसके लिए प्रयत्न करने से मनुष्य का कल्याण नहीं होता। वास्तव में अन्य पुरुषार्थ की अवहेलना करने वाला कभी मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता।
इसी प्रकार धर्म आधारभूत पुरुषार्थ है लेकिन तीन अन्य पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक व पोषक हैं। यदि व्यापार भी करना है तो मनुष्य को सदाचरण, संयम, त्याग, तपस्या, अक्रोध, क्षमा, धृति, सत्य आदि धर्म के विभिन्न लक्षणों का निर्वाह करना पडेगा। बिना इन गुणों के पैसा कमाया नहीं जा सकता। व्यापार करने वाले पश्चिम के लोगों ने कहा कि आनेस्टी इज द बेस्ट पालीसी अर्थात सत्य निष्ठा ही श्रेष्ठ नीति है। भारतीय चिंतन के अनुसार आनेस्टी इज नट ए पालीसी बट प्रिसिंपल अर्थात सत्यनिष्ठा हमारे लिए नीति नहीं है बल्कि सिध्दांत है। यही धर्म है और अर्थ और काम का पुरुषार्थ धर्म के आधार पर चलता है। राज्य का आधार भी हमने धर्म को ही माना है। अकेली दंडनीति राज्य को नहीं चला सकती। समाज में धर्म न हो तो दंड नहीं टिकेगा। काम पुरुषार्थ भी धर्म के सहारे सधता है। भोजन उपलब्ध होने पर कब, कहां, कितना कैसा उपयोग हो यह धर्म तय करेगा। अन्यथा रोगी यदि स्वस्थ्य व्यक्ति का भोजन करेगा स्वस्थ व्यक्ति ने रोगी का भोजन किया तो दोनों का अकल्याण होगा। मनुष्य की मनमानी रोकने को रोकने के लिए धर्म सहायक होता है और धर्म पर इन अर्थ और काम का नियंत्रण को सही माना गया है।
पंडित दीनदयाल जी के अनुसार धर्म महत्वपूर्ण है परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि अर्थ के अभाव में धर्म टिक नहीं पाता है। एक सुभाषित आता है- बुभुक्षित: किं न करोति पापं, क्षीणा जना: निष्करुणा: भवन्ति। अर्थात भूखा सब पाप कर सकता है। विश्वामित्र जैसे ऋषि ने भी भूख से पीडित हो कर शरीर धारण करने के लिए चांडाल के घर में चोरी कर के कुत्ते का जूठा मांस खा लिया था। हमारे यहां आदेश में कहा गया है कि अर्थ का अभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि वह धर्म का द्योतक है। इसी तरह दंडनीति का अभाव अर्थात अराजकता भी धर्म के लिए हानिकारक है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार अर्थ का अभाव के समान अर्थ का प्रभाव भी धर्म का द्योतक होता है। जब व्यक्ति और समाज में अर्थ साधन न होकर साध्य बन जाएं तथा जीवन के सभी विभुतियां अर्थ से ही प्राप्त हों तो अर्थ का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है और अर्थ संचय के लिए व्यक्ति नानाविध पाप करता है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति के पास अधिक धन हो तो उसके विलासी बन जाने की अधिक संभावना है।
पश्चिम में व्यक्ति की जीवन को टुकडे-टुकडे में विचार किया जबकि भारतीय चिंतन में व्यक्ति के जीवन का पूर्णता के साथ संकलित विचार किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार हमारे चिंतन में व्यक्ति के शरीर, मन बुध्दि और आत्मा सभी का विकास करने का उद्देश्य रखा है। उसकी सभी भूख मिटाने की व्यवस्था है। किन्तु यह ध्यान रखा कि एक भूख को मिटाने के प्रयत्न में दूसरी भूख न पैदा कर दें और दूसरे के मिटाने का मार्ग न बंद कर दें। इसलिए चारों पुरुषार्थों को संकलित विचार किया गया है। यह पूर्ण मानव तथा एकात्ममानव की कल्पना है जो हमारे आराध्य तथा आराधना का साधन दोंनों ही हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पश्चिम के खंडित अवधारणा के विपरीत एकात्म मानव की अवधारणा पर जोर दिया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि उपाध्याय जी के इस चिंतन को व्यावहरिक स्तर पर उतारने का प्रयास किया जाए।